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अच्छा ही है मुझे भरम है / हरि फ़ैज़ाबादी
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अच्छा ही है मुझे भरम है
ख़तरा सच कहने में कम है
बड़ा कठिन है उसे मिटाना
तले चरागों के जो तम है
देखो औरों को तब कहना
सबसे भारी मेरा ग़म है
पहले कुछ खोने की सोचो
कुछ पाने का यही नियम है
बहका रहा पादरी सबको
मुल्ला भी पंडित के सम है
कैसे करें यक़ीन आजकल
चीज़ क़ीमती लाज-शरम है
कभी-कभी लगता है क़िस्मत
केवल झूठों की हमदम है
नाहक़ नहीं ज़माना कहता
कच्चे धागों में भी दम है