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अच्छा है जो मिला वह कहीं छूटता गया / वसीम बरेलवी

अच्छा है जो मिला वह कहीं छूटता गया
मुड़ मुड़ के ज़िन्दगी की तरफ देखना गया

मैं खाली ज़ेब सब की निगाहों में आ गया
सड़कों पे भीख मांगने वालों का क्या गया

जाना ही था तो जाता उसे इख़्तियार था
जाते हुए ये बात मुझे क्यों बता गया

क्यों मुझमें ढूंढता है वह पहला सा ऐतबार
जब उसकी ज़िन्दगी में कोई और आ गया

उसने भी छोड़ दी मेरे बारे में गुफ्तगू
कुछ दिन के बाद मैं भी उसे भूल-सा गया

मेले की रौनकों में बहुत ग़ुम तो हो 'वसीम'
घर लौटने का वक़्त मियां सर पे आ गया।