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अच्छी घड़ी है यह / भवानीप्रसाद मिश्र

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इस समय मैं एक बगीचे में बैठा हूं
मेरे आसपास के पेड़ों पर
पंछी चहक रहे हैं
और फूल महक रहे हैं पौधों पर
सूरज को सुख देते लग रहे हैं
ये चहकने वाले पंछी
महकने वाले फूल
वह मुझे साधारण से कुछ ज़्यादा
प्रसन्न भाव से आसमान में
ऊपर उठता दिख रहा है !

अच्छी घड़ी है यह
जिसमें मैं दिनकर जी के साथ
तुम दोनों के बारे में
सहज भाव से सोच पा रहा हूँ
लगता है तुम दोनों
चमकने वाले पंछी
और महकने वाले फूल हो
और तुम्हारी ख़ुशी के ख़याल में
आसमान में उठने वाले सूरज की तरह
दिनकर जी आज हमेशा से ज़्यादा ख़ुश हैं !

उनकी ख़ुशी मुझे हमेशा से भी अधिक हलका बनाए हुए है
और गुनगुना रहा हूँ मैं हौले-हल्के
तुम्हारे आने वाले दिन
तुम्हारे आने वाले पल
तुम्हारे आने वाले छिन
कि गिननी न पड़ें
तुम्हें कभी घड़ियाँ

उन्हें चमका सको तुम
सूरज और चान्द
और तारों की तरह
लग सको तुम
दुनिया को दी गई
दिनकर जी की
कविताओं की तरह
हल्की-भारी
हर घड़ी को
सहारों की तरह !

दिनकर जी की पौत्री पूर्णिमा के विवाह के अवसर पर पूर्णिमा और उनके वर नरेन्द्र के लिए दिनकर जी के नाम 28 जनवरी 1974 को भेजे गए आशीर्वाद-पत्र में कवि भवानीप्रसाद मिश्र द्वारा लिखी गई कविता, जो आज तक (27 मार्च 2023) तक अप्रकाशित है।