भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अच्छे दिन की खूब कही है / गोपाल कृष्ण शर्मा 'मृदुल'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अच्छे दिन की खूब कही है।
उलट-पुलट कर बात वही है।।

राजा के नंगेपन का क्या,
‘परजा’ के मुँह जमा दही है।।

निर्बल और सबल का रिश्ता,
इनका सिर, उनकी पनही है।।

‘भाग-करम’ सब अपने-अपने,
शासन का कुछ दोष नहीं है।।

बटमारों की पाँचों घी में,
आज़ादी का सुफल यही है।।

जुमलेबाजी के जंगल में,
सच्चाई तो भटक रही है।।

भूखे-नंगे राजा चुनते,
क्या इससे संतोष नहीं है?