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अच्छे दिन फिर आयें / योगक्षेम / बृजनाथ श्रीवास्तव

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सभी सुखी हों
और सभी मुसकायें
अच्छे दिन फिर आयें

एक दूसरे से
खुलकर हम
सुख-दुख की सब कर लें बातें
भरी दुपहरी
घने अँधेरे
साथ रहें हम हँसते गाते

गाँठ-गाँठ के
खोल बंध सुलझायें
अच्छे दिन फ़िर आयें

पेंड़ बनें हम
छाया बाँटें
लायें बादल मलय हवाएँ
बोनसाई को
काटें फेंके
बडे पेंड़ कुछ पुन: लगाएँ

ग्राम देवता
सच्चे न्याय सुनायें
अच्छे दिन फिर आयें

पुन: धेनुकुल
अमिय दुग्ध के
मीठे-मीठे भंडार भरें
सोना उपजे
खेत-खेत से
फिर अन्नों से आगार भरें

भोर सुनहरी
दरवाजे इठलाये
अच्छे दिन फिर आयें