Last modified on 3 अप्रैल 2018, at 22:15

अजनबी जान न पहचान बना ले मुझ को / रंजना वर्मा

अजनबी मान न पहचान बना ले मुझ को
अपने होठों की तू मुस्कान बना ले मुझ को

जिंदगी भर नहीं जो साथ निभाना मुमकिन
दो घड़ी का ही तू मेहमान बना ले मुझ को

मुझ से मिल के तुम्हें तकलीफ अगर होती हो
मान अपना नहीं अनजान बना ले मुझ को

पत्थरों के भी जो सीने को बना दे दरिया
उसी भगवान की सन्तान बना ले मुझ को

हूँ तेरे ख्वाब की लिक्खी हुई तहरीर अगर
आने वाला नया दीवान बना ले मुझ को

क्यों यों पढ़ता है सदा हाथ की लकीरों को
बदले तकदीर वो तूफ़ान बना ले मुझ को

तू ये मत बोल है आग़ोश में जन्नत तेरी
मत खुदा बन कोई इंसान बना ले मुझ को