अजन्मी / विजय कुमार विद्रोही
अंधलोक, ये जलमंडल है ,मैं जिस घर में सोई हूँ ।
धड़कन सुनती रहती हूँ ,सुंदर सपनों में खोई हूँ ।
मैं मम्मी जैसी लगती या पापा की राजदुलारी हूँ ।
मैं ही तो हूँ जो उनके,सूने आँगन की फुलवारी हूँ ।
दुनिया में जब मैं आऊँगी तो, मम्मी-पापा देखूँगी ।
भैया, दीदी , दादी,नानी और चाची-चाचा देखूँगी ।
सब कितना अच्छा है ना, मैं अपने घर में लेटी हूँ ।
कहते हैं दुनिया बुरी बहुत, देखो ज़िंदा हूँ! बेटी हूँ!
इक रोज़ सुना मैंने देखो, मुझको बेटे की आशा है ।
बेटा ही मेरे वंशबीज की , पूर्णसत्य परिभाषा है ।
जाने कैसी बात चली, क्यूँ रार हुआ फिर पापा से।
मम्मी थक के बैठ गयी, हामी भर घोर निराशा से ।
दिल की धड़कन तेज़ हुई,मेरा तन मुझपर बोझ हुआ।
पता नहीं क्यूँ मम्मी-पापा को,ना कुछ संकोच हुआ।
मेरे सारे सुंदर सपने अब, मुझसे नाता तोड़ गऐ ।
भैया-दीदी , दादी-नानी , मुझको मरने को छोड़ गऐ ।
वो मेरा अंतिम दिन था, मैं सुंदर सपनों में खोई थी ।
जब मेरा हश्र निकट आया, मैं पापा-पापा रोई थी ।
मेरी दुनिया जलमग्न नहीं थी, पूरी सूखी-सूखी थी।
वो कालस्वरूपा कैंची अब, मेरे उस तन की भूखी थी ।
जकड़ा पैर दर्द से चीखी, तुमको याद किया पापा ।
मेरी अदनी पायल का सपना, क्यूँ बर्बाद किया पापा ।
बस कंगन वाले हाथ बचे ,बेपैर हो गयी थी पापा ।
मम्मी के अंदर मैं , अंगों का ढेर हो गयी थी पापा ।
हाथों को मेरे काट-पीट, कैंची गर्दन पर आन टिकी ।
रो-रोकर चीखें मार रही थी, बेटी तेरी कटी – पिटी ।
मेरी गर्दन को काट रही कैंची,मैं लेकिन ज़िन्दा थी ।
ना शर्मसार मम्मी-पापा , ना मानवता शर्मिंदा थी ।
तन की पीड़ा खत्म हुई लेकिन इस मन की बाक़ी थी ।
बस ऐसे ही बेमन से मैं कमरे के बाहर झाँकी थी ।
मेरे पप्पा के नयनों में इक मर्महीन संतोष दिखा ।
पता नहीं मम्मी-पापा को किसने ऐसा दिया सिखा ।
खत्म हुई मैं दुनिया से अब बेटी का क्या करना है ।
बेटी तो ऐसा शापितघट है जिसको हरदम भरना है ।
कत्लगाह से बाहर निकली मुझसे सहते नहीं बना ।
बेज़ुबान हूँ लेकिन मुझसे अब चुप रहते नहीं बना ।
ना अग्निशिखाऐं देखीं ना मैं हुई कबर में कहीं दफ़न ।
कंगन,पायल, टिकली ना ही भाग्य में मेरे रहा कफ़न ।
किस मज़हब ने इंसानों को ऐसे दूषित आमाल दिऐ ।
नन्हें कोमल तन के टुकड़े कुत्तों के आगे डाल दिऐ ।
मैंने देखा इक कुतिया को कचरे के ऊपर लेटी थी ।
वो अपने मम्मी-पापा की मेरे जैसी ही बेटी थी ।
ज़िंदा है, दुनिया में है, देखो वो भी इक बेटी है ।
वो अपने मम्मी पापा के पहलू में कैसी लेटी है ।
ऐ काश ! मैं भी यहीं कहीं ज़िंदा होती लेटी होती ।
उन ज़ल्लादों से बेहतर मैं इस कुतिया की बेटी होती ।