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अजब कैफ़ियत दिल पे तारी हुई है / भरत दीप माथुर
Kavita Kosh से
अजब कैफ़ियत दिल पे तारी हुई है
बिना बात के सोग़वारी हुई है
क़फ़स में परिंदा कलपता हो जैसे
कुछ ऐसी मुई बेक़रारी हुई है
ज़माने की नज़रें बदलने लगी हैं
ज़रा जो तरक़्क़ी हमारी हुई है
सहम से गए हैं चनारों के पत्ते
सुना है उधर संगबारी हुई है
ये दिल डर के साये में रहता है हर पल
बड़ी जबसे बिटिया हमारी हुई है
फफोले पढ़े हैं मेरे पाँव में और
रहे मैक़दा रेगज़ारी हुई है
बदलने लगा है मेरा भी नज़रिया
कि जब से अदीबों से यारी हुई है