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अजब खेल हैं जादूगर के / प्रकाश मनु
Kavita Kosh से
अजब खेल हैं जादूगर के!
लंबी पगड़ी तुर्रेदार
ढीली-ढाली सी सलवार,
आते ही उसने तो भाई
किस्से छेड़े इधर-उधर के!
लेकर दस पैसे का सिक्का
बाँध रूमाल में ऊपर फेंका,
छू-मंतर बोला तो सिक्का
पहुँचा सोनू की नेकर में!
एक टोकरी खाली-खाली
थी सबकी वह देखी-भाली,
जादूगर ने उसे घुमाया
निकल पड़े मुर्गी के बच्चे!
फिर उसने लेकर दस मटके
तोड़ दिए सारे वे झट से,
जब डंडे से उन्हें छुआ तो-
साबुत थे वे सारे मटके!