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अजब देखा विरोधाभास यारो / आर्य हरीश कोशलपुरी

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अजब देखा विरोधाभास यारो
नदी के कंठ पर ही प्यास यारो

यहाँ अन्याय की दुनिया सजी है
लगे सहयोग में इजलास यारो

खड़े रहने को भी धरती नही है
उड़ो ख़ाली पड़ा आकाश यारो

बने हो ऐंठ में राणा के वंशज
पहाड़ों की चबाओ घास यारो

हमारे साथ के सब कह रहे हैं
लिखो पतझड़ को ही मधुमास यारो

कभी इस लेखनी को भी सराहो
ज़रा दिल से कहो शाबास यारो