भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अज़हर ख़ान के लिए / कांतिमोहन 'सोज़'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

(यह ग़ज़ल अज़हर ख़ान के लिए)

कभी नए कभी बेहद पुराने होते हैं।
अब उसके पास अजब से बहाने होते हैं॥

हमें ये ताब कहाँ थी कि प्यार कर देखें
सुना था ख़ून के आँसू बहाने होते हैं।

सबब तो कुछ भी नहीं पर चलन है दुनिया का
कि दाग़े-दिल<ref>दिल के ज़ख़्म</ref> यहाँ हँसकर दिखाने होते हैं।

हँसी नहीं है किसी की ख़ुशी का पैमाना
हँसी की आड़ में आँसू छुपाने होते हैं।

फ़रेब देती हैं आँखें ग़रीब होने का
पर इनके पास बला के ख़ज़ाने होते हैं।

लिपट के पाँव से आती है ग़म की गर्द यहाँ
मगर निशात के लम्हे<ref>ख़ुशी के पल</ref> चुराने होते हैं।

नहीं था सोज़ निशाना नहीं था तू उनका
अचूक तीर मगर आज़माने होते हैं॥

2002-2017

शब्दार्थ
<references/>