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अजिर प्रभातहिं स्याम कौं, पलिका पौढ़ाए / सूरदास

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राग बिलावल


अजिर प्रभातहिं स्याम कौं, पलिका पौढ़ाए ।
आप चली गृह-काज कौं, तहँ नंद बुलाए ॥
निरखि हरषि मुख चूमि कै, मंदिर पग धारी ।
आतुर नँद आए तहाँ जहँ ब्रह्म मुरारी ॥
हँसे तात मुख हेरि कै, करि पग-चतुराई ।
किलकि झटकि उलटे परे, देवनि-मुनि-राई ॥
सो छबि नंद निहारि कै, तहुँ महरि बुलाई ।
निरखि चरति गोपाल के, सूरज बलि जाई ॥


भावार्थ :--(माता यशोदा ने) प्रातःकाल श्यामसुन्दर को आँगन में छोटी पलंगिया (खटुलिया) पर लिटा दिया । श्रीव्रजराज को वहाँ बुलाकर स्वयं घर का कार्य करने जाने लगीं । पुत्र का मुख देखकर हर्षित होकर उसका चुम्बन लेकर वे भवन में चली गयीं । साक्षात् परब्रह्म मूरकेशत्रु श्रीकृष्णचन्द्र जहाँ सोये थे, वहाँ श्रीनन्द जी शीघ्रतापूर्वक आ गये । (श्यामसुन्दर) पिता का मुख देखकर हँसे और पैरों से चतुराई करके (पैरों को एक ओर कर के)किलकारी मारकर वे देवताओं तथा मुनियों के स्वामी झटके से गये । (पेट के बल हो गये)। यह शोभा देखकर श्रीनन्द जी ने व्रजरानी को वहाँ बुलाया । गोपाल की लीला देख-देखकर सूरदास उन पर न्योछावर होता है ।