राग विलावल, झूमरा 16.7.1974
अजिर में खेलत बाल-गोपाल।
लखि-लखि रूप लाल को मैया मानत आपु निहाल॥
सिर लटुरी अँग झँगुली अनुपम, लटकन लटकत भाल।
माथे तिलक, पायँ पैजनियाँ रुनझुन रवहिं रसाल॥1॥
कण्ठ सोह बधनख अरु कठुला मोतिन की वर माल।
कर कंकनियाँ कटि किंकिनियाँ, सुखमा सुभग विसाल॥2॥
सोहत कर क्रीनक मनोहर, किलकत दै-दै ताल।
निज प्रतिविम्ब धरनकों धावत, चलत घुटुरुअन चाल॥3॥
सुघर अधर विच द्वै दन्तुलियाँ, हँसत हँसावत लाल।
मचलि-मचलि माखनकों पुनि-पुनि मातुहिं करत विहाल॥4॥
बाल गोपाल-लाल की सुखमा नयनन करत निहाल।
मुनिजन हूँ की मति तहँ भोरो, कहा हमारो हाल॥5॥