Last modified on 22 फ़रवरी 2009, at 21:28

अजीब रंग के दहरो-दयार थे यारो / प्रफुल्ल कुमार परवेज़


अजीब रंग के दहरो-दयार थे यारो
तमाम लोग हवा पर सवार थे यारो

हर एक शख़्स को हमने जो ग़ौर से देखा
हर एक शख़्स के चेहरे हज़ार थे यारो

दयार-ए-ग़ैर में शिक़वे फ़ज़ूल थे वर्ना
हमारे दिल में बहुत-से ग़ुबार थे यारो

हमारा ज़र्फ़ कि हँस कर गुज़ार दी हमने
हयात में तो बहुत ग़म शुमार थे यारो

ये बात और कि वो शख़्स बेवफ़ा निकला
ये बात और हमें ऐतबार थे यारो