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अजीब शख़्स हूँ मैं उसको चाहने वाला / प्रफुल्ल कुमार परवेज़

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अजीब शख़्स हूँ मैं उसको चाहने वाला
जो आदतन ही दिलों को है तोड़्ने वाला

मैं पी रहा हूँ बड़े ज़र्फ़ से उसी दिन से
कि जब से कोई नहीं मुझको रोकने वाला

बहुत उदास हुआ मेरी चुप्पियों से वही
हर एक बात पे रह-रह के टोकने वाला

मैं उड़ गया तो मेरे लौटने को तरसेगा
मेरे परों को सुबह शाम तोलने वाला

वो लाख मुझसे कहें, मिन्नतें करें लेकिन
मैं अब के भेद नहीं कोई खोलने वाला

मेरे सिवाए कोई और हो नहीं सकता
मेरे वजूद को मिट्टी में रोलने वाला

मैं आइने की तरह क्यूँ फ़िज़ूल में टूटूँ
कुछ इस अदा से मैं अब सच हूँ बोलने वाला