अजूबा आतिथ्य / सुरेन्द्र प्रसाद यादव
महर्षि आयोद धौम्य रोॅ शिष्य उपमन्यु छेलै
गुरु हुनका गाय चराय रोॅ काम देनेॅ छेलै ।
ब्रह्मचारी ! गुरुसेवा रत रही छेलै
पास रोॅ गाँव सें भिक्षा मांगी केॅ लानै छेलै ।
भिक्षा लानी केॅ गुरु केॅ अर्पित करे छेलै
गुरु ! होकरा सेॅ निकाली केॅ दै छेलै ।
वहीं सेॅ शिष्य भोजन करै छेलै
होकरै सेॅ हौ संतुष्ट होय छेलै ।
हर कामोॅ में उपमन्यु पटु निकलै छेलै
दुःख पीड़ा सहन करै रोॅ असीम शक्ति छेलै ।
आबेॅ जे भिक्षा मांगी केॅ लानै छेलै
हौ सब्भे भिक्षा आपनें पास रखे छेलै ।
हौ भिक्षा में उपमन्यु केॅ कुछु नै दै छेलै
गुरु रोॅ आदेश केॅ खुशी सें पालन करै छेलै ।
गुरु बोललै ! तोरोॅ सब्भै अन्न लै लेनेॅ छियौं
अन्न रोॅ अभाव में तोरा स्वस्थ देखे छियौं ।
शिष्य बोललै ! दोबारा भिक्षा लाने छियै
वही अन्न सें हम्मेॅ आपनोॅ भोजन करै छियै ।
गुरु बोललै ! हेकरा में गृहस्थ संकोच करतेॅ होतै
दोसरोॅ भिक्षार्थी केॅ जीविका में बाधा होतै ।
गुरु केॅ बातोॅ केॅ सहर्ष स्वीकार करलकै
हौ कार्यो सें आपनोॅ आप केॅ वंचित करलकै ।
गुरु पूछे छै ! आबेॅ तोहें भोजन की करै छौ
अन्न रोॅ अभाव में तोंय की खाय छौ ।
शिष्य नें सच-सच बातोॅ केॅ बताय देलकै
गाय रोॅ दूधपान करै छियै, बताय देलकै ।
हमरोॅ इजाजत रोॅ बिना दूध कैन्हें पान करै छौ
आबेॅ गुरु रोॅ बातोॅ पर संकोच करै छौ ।
कुछ दिनोॅ रोॅ बाद गुरुजी पूछै छै
आबेॅ की पान करे छौ, स्वस्थ लागै छौ ।
बछड़ा रोॅ मुखोॅ रोॅ गिरलोॅ फेन पान करै छियै
झाग सें आपनोॅ भूख मिटावै छियै ।
बछड़ा भूखे रही जाय होतै
तोरोॅ अपराध वाला है काम कईतेॅ ।
उपमन्यु रोॅ आहार रोॅ सब मार्ग बंद होलै
गाय रोॅ पीछू-पीछू वनोॅ में घूमै छेलै ।
अचानक एक दिन भूखले रहिलेॅ पड़लै
विवश होय केॅ वनोॅ में भटकेॅ लागलै ।
विषैला पत्ता सें आखोॅ रोॅ रोशनी चल्लोॅ गेलै
अंधा होय केॅ वनोॅ में भटकेॅ लागलै ।
गाय रोॅ पीछू-पीछू चलना कठिन हुवेॅ लागलै
घुमतें हुवेॅ जलहीन कुआं में गिरी गेलै ।
शाम केॅ चरवाहा बिना गाय आबी गेलै
सब्भेॅ गाय बथानी पर डकरे लागलै ।
उपमन्यु केॅ नै देखलकै, गुरु चिंतित होलै
भोजन बंद करी देलियै, वहीं सें रूठी गेलै ।
गुरु वनोॅ में जाय केॅ शिष्य केॅ हाँक लगैलकै
‘‘बेटा ! उपमन्यु तोहें कहाँ छैं’’ हाँक लगैलकै ।
उपमन्यु के स्वर सुनाय पड़लै
गुरु केॅ आश मनोॅ में जागलै ।
‘‘जलहीन कुआँ में गिरी गेलोॅ छियै
हमरा बचाय लेॅ कैन्हें आवे छियै ।’’
जलहीन कुआँ रोॅ नजदीक गेलै
पूछला पर आपनोॅ वृतांत बतैनें छेलै ।
गुरु रोॅ कठोर हृदय पिघली गेलै
आपने आप में मर्माहत होय गेलै ।