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अजूबा दर्शन / सांध्य के ये गीत लो / यतींद्रनाथ राही

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जीवन एक पहेली साधौ!
जीवन एक
अजूबा दर्शन!

किसको कौन विदा करता है
किसको
कौन रोक पाया है
सबको एक दिवस जाना है
जो भी कभी
यहाँ आया है
यहीं छोड़ना
सब पड़ता है
प्यार, राग, अनुराग
समर्पण।
एक बुदबुदा है पानी का
क्षण में फूट
विलय होना है
साँसों के कच्चे धागों में
क्या पाना है
क्या खोना है?
जीवन के इस
महायज्ञ का
होना ही है
एक विसर्जन।

मुट्ठी भरी राख
कह जाती
तत्वों का तत्वों में विघटन
परिवर्तन का महा चक्र है
नश्वरता का
नव-नव सर्जन
महाशून्य में
महा विलय ही
महा सर्ग का
है उत्सर्जन।