अजेय राष्ट्र / महावीर प्रसाद ‘मधुप’
मत अनेक हों, लेकिन व्रत है एक सभी का,
देशभक्ति से विरत न होता हृदय किसी का।
जहाँ खड़ी दीवार भेद की कभी न होती,
गुँथे जहाँ अनुराग सूत्र में मन के मोती।
राष्ट्र-सुरक्षा ही सदा जिनका पावन ध्येय है।
विजित कभी होता नहीं, उनका राष्ट्र अजेय है॥
जहाँ अपरिमित अन्न-कृषक जन हैं उपजाते,
व्यापारी उद्यम कर भारी द्रव्य कमाते।
जो प्रमाद से विमुख परिश्रमलीन सतत् हैं,
भाग्य-भरोसे नहीं सदा पुरुषार्थ-निरत हैं।
प्राप्त जिन्हें गौरव तथा, दशोन्नति का श्रेय है।
विजित कभी होता नहीं, उनका राष्ट्र अजेय है॥
जिनमें है बलिदान भावना रहती जागृत,
समय पड़े पर कर सकते सर्वस्व समर्पित।
तन-मन-धन देकर रख लेते अडिग आन हैं,
किसी मूल्य पर भी न गँवाते स्वत्व शान हैं।
जिन्हें देश हित के लिए, कुछ भी नहीं अदेय है।
विजित कभी होता नहीं, उनका राष्ट्र अजेय है॥