अज्ञान का भैंसा बचपन रौंदता है / राणा प्रताप
जब से राजनीतिक दल सत्ता में आए
मेरा बच्चा दर-दर भटकता है
वह घर पर नहीं खाता, कहता है
स्कूल जाऊँगा तो एक रुपया मिलेगा
दलिया और खिचड़ी मुफ़्त
कहता है, हम पढ़ने के लिए स्कूल जाते हैं
मैं नए राजनीतिक दल नहीं जानती
सिर्फ़ महंगाई जानती हूँ
सब्ज़ी का भाव और चाय-चीनी जानती हूँ
नए दलों ने समाज में बँटवारा कर दिया है
पति ने बरजा है
रहमत मियाँ से न मिलना
रऊफ से भी बातें न करना
हिन्दुई हवा है
ज़रा बच के रहने में ही भला है
किसी ने कहा,
आज़ादी की पचासवीं वर्षगाँठ है
और शिकारी चाकू लिए दौड़ेंगे
तराशेंगे लोग
और अगर तुम पिद्दी हो
धकियाए जाओगे
खाली हाथ आओगे घर
कुत्ते भौंकेंगे
औरतें हंसेंगी और बच्चे परे हट जाएँगे
क्योंकि बच्चे अब क ख ग घ नहीं पढ़ते
पढ़ते हैं यूनी जैक, माईकेल जैक
और विश्व बैंक
जो राजनीति में हैं
नर्म गद्दों में सोए
हम मतदाता तो कुल्हे मटकाने के लिए हैं
चुनाव के वक़्त
अज्ञानता का भैंसा
सबको धक्के मारकर गिराता आगे बढ़ जाता है
सब साक्षरता भी उसी की मुट्ठी में है
जिसके पास जैक है
बैंक है, तिजोरी है
हाय ! हमारी शिक्षा भी
पेट के बल लेट गई है