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अटकूं-मटकूं / मेराज रज़ा
Kavita Kosh से
अटकूं-मटकूं,
छत से लटकूं।
हौले-हौले
घर में आऊँ।
लारों से मैं
जाल बनाऊँ।
उन जालों पर
दौड़ूं, झटकूं।
मक्खी-मच्छर,
कीट फसाऊँ।
बहुत मजे से
उनको खाऊँ।
बच ना पाए
जिसको पटकूं।
सुलझे धागे
को उलझाऊँ।
बच्चों मकड़ी
मैं कहलाऊँ।
देख छिपकली
पास न फटकूं।