भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अटखेलियाँ / निदा नवाज़

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

फूलों के शहर से आई थी वह
नाज़ुक बदन, नाज़ुक अन्दाम
नज़ाक्त्तों का एक ख़ज़ाना था
उसकी आँखों में
और
प्रातः काल की पवन
उसके रेशमी बालों के साथ
करती थीं अटखेलियाँ
चुरा लेती थी थोड़ी खुशबूएं
उसकी आँखों में थे राज़
और होंठों पर अमृत धार
उसके चहरे पर नृति करती थीं
मस्ती की लहरियां
वह दिलों को बनाती थी ग़ुलाम
और इच्छाएं थीं उसकी दासियाँ
मेरे मन-आंगन में
खिलती है उसकी धूप
और आत्मा में
गूंजते हैं उसी के गीत.