भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अटल कामना! / रश्मि शर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


लम्बा जीवन न दो स्वामी
जीवन मुझे रुपहला देना
जब पाश काल का गले पड़े
किंचित पहले बतला देना ।

नमन कर सकूँ जन्मभूमि को
इतनी मोहलत भर देना
भारत माँ का लाल कहाऊँ
इतनी शोहरत भर देना ।

महाकाल के पार चलूँ जब
अटल कामना शेष रहे
सिंधु नदी से रामेश्वरं तक
यह एक सूत्र में देश रहे ।

पोखरण की रणभेरी अब
कभी ना मद्धम होने पाए
नदी देश की मिले नदी से
न सूखा पड़े ,बाढ़ न आए ।

स्वतन्त्रता की वर्षगाँठ पर
क्योंकर प्राण तजें अपने
यह पावन दिन देखने को
निशदिन नयन सजे सपने ।

मृत्यु अटल है ‘अटल’ अमर है
यह विश्वास मैं लेकर जाऊँ
लौटूँ भारत माँ के आँचल में
फिर-फिर जन्म यहीं पर पाऊँ