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अठारै / प्रमोद कुमार शर्मा
Kavita Kosh से
सबद नैं पढो
-चढो
ऊंचै सूं ऊंचा इण ढाळ
मार सकै नीं काळ-अकाळ
सबद सांचो है
सै सूं पुराणो खांचो है
जिण मांय मिनख ढळै
पण अबै :
भाखा रो जी घणोई बळै
आंगणै मांय
-खड्डो
सबद नैं पढो।