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अड़ी रही / सुदर्शन प्रियदर्शिनी
Kavita Kosh से
मांगते मांगते
मेरी मैं -मर
गई - पर
मैं नहीं मरी ...
दीठ सी
जिन्दगी
दीठों की
तरह
अंदर अड़ी रही ...
चाहा था
जिन्दगी
चले अपने -आप
उछलती -फलांगती
छलांगे-लगाती
पर खड़ी रही
बैसाखियों पर
अड़ी - अड़ी ....
आज कैसे -तैसे
ले आई हूँ
तेरे द्वार
उखड़ी - बिखरी
मरी मरी ....