भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अडूवो / हरीश हैरी
Kavita Kosh से
खेत रूखाळतै-रूखाळतै
अड़ूवै रा गाबा
होग्या अेकदम लीरो-लीर
कणक री बीजांत पछै
बाबै आप रो कुड़तो खोल'र
अड़ूवै नै पैरा दियो
बाबै रो परेम देख'र
अड़ूवो अेकर फैर
होग्यो राजी
खेत रूखाळण सारू!