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अतः सुबह होने को है / वंदना गुप्ता
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घुटन चुप्पी की जब तोड़ने लगे
शब्द भाव विचार ख्याल से
जब तुम खाली होने लगो
एक शून्य जब बनने लगे
और उस वृत्त में जब तुम घिरने लगो
न कोई दिशा हो न कोई खोज
एक निर्वात में जब जीने लगो
अंतर्घट की उथल पुथल ख़त्म हो जाये
बस शून्य और समाधि के मध्य ही कहीं
खुद को अवस्थित पाओ
समझ लेना
घनघोर अन्धकार सूचक है प्रकाश का
अतः सुबह होने को है