भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अति गूढ़ / सुकुमार राय
Kavita Kosh से
सवाल अनगिन, सिफ़र जवाब
बड़े कहें, " चुप! मग़ज़ ख़राब?"
कैसै सीखें, समझें, जानें ?
रह जाएँ उल्लू नादाने ?
नींद कहाँ दिन में छुप जाए?
बेंग क्यों बारिश में टर्राए?
गधे के सींग, पंख हाथी के
होते क्यों न, बताओ, सीखें।
तड़का झाँ-झाँय, सोडा फोंs
क्यों गुस्साएँ यों? बोलो।
चोटी कैसे रक्खे टकला?
और भूत का ये क्या घपला --
उसे वहम हर कोई बताए,
भूत का डर फिर कहाँ से आए?
'सिर'-फिरे को 'पा'-गल बोलें !
ये सब भेद कोई तो खोले !
बड़े होके ख़ुद ही देखेंगे
बड़ी किताबों से पढ़ लेंगे।
सुकुमार राय की कविता : बिषम चिन्ता (বিষম চিন্তা) का अनुवाद
शिव किशोर तिवारी द्वारा मूल बांग्ला से अनूदित