अति छीन मृनाल के तारहु ते, तेहि ऊपर पाँव दै आवनो है।
सुई बेह ते द्वार सकीन तहाँ, परतीति को हाँड़ो दावनो है॥
'कवि बोधा' अनी घनी जेजहु ते, चढ़ि तापै न चित्त डरावनो है।
यह प्रेम को पंथ कराल महा, तरवारि की धार पै धावनो है॥
अति छीन मृनाल के तारहु ते, तेहि ऊपर पाँव दै आवनो है।
सुई बेह ते द्वार सकीन तहाँ, परतीति को हाँड़ो दावनो है॥
'कवि बोधा' अनी घनी जेजहु ते, चढ़ि तापै न चित्त डरावनो है।
यह प्रेम को पंथ कराल महा, तरवारि की धार पै धावनो है॥