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अति प्रसन्न गदगद गिरा / शृंगार-लतिका / द्विज

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दोहा
(कवि प्रसन्नता-वर्णन)

अति प्रसन्न गदगद गिरा, मुख सौं कढ़त न बात ।
बार-बार बिनती करी, जोरि सुकर-जलजात ॥५३॥