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अतीतजीवी से / गुलशन मधुर

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जो जा चुका है, जा चुका है
पर मताग्रह की एक बेबसी है
जिससे तुम्हारे अनजाने में
तुम बेतरह बंधे हो
जिसके गिर्द तुमने बुन रखा है
एक बीता हुआ स्वर्णिम कल
और जिस पर तुम
खड़ी करना चाहते हो
अनागत की
स्वयं को भव्य जान पड़ती एक इमारत
एक जादू है
जो तुम्हारे सर चढ़कर बोलता है
बहुत कठिन है टूटना
अवश मंत्रमुग्धता का
यह वशीकरण सम्मोह

जहां लौटने को तुम मान चुके हो
सभी रोगों का रामबाण उपचार
शताब्दियों पहले के
मनचाहे दृश्यों का वह स्वप्न
तुम्हारा दुराग्रह, तुम्हारा हठ है
तुम मुझे, इसे, उसे, सभी को
उस दु:स्वप्न में झोंक देना चाहते हो
अपनी प्रक्ल्पना की उस दुनिया में
जिसे गढ़ते-गढ़ते
कितनी अनगढ़ हो गई है
तुम्हारी सोच
तुम, जो झेल नहीं पा रहे हो
एक कल्पित बीते कल का विछोह

जिसके हम-तुम उत्तराधिकारी हैं
न संभव है, न अपेक्षणीय
उस कालबिन्दु पर लौटना
जो अब व्यतीत का खंड है
कितना भी गौरवशाली रहा हो वह
या फिर नहीं
आगे जो भी होगा, उससे अलग होगा
- कुछ और होगा
तो छोड़ भी चुको
फिर-फिर वहीं लौटने की ज़िद
वह जो आदिम आवास है तुम्हारी सोच का
वह आरामदेह किन्तु निरालोक खोह

बहुत खेल चुके हो तुम
यह संत्रासकारी घातक खेल
बहुत हो चुकीं
सच को झूठ का लिबास पहनाकर
उसकी हत्या की साज़िशें
कथा-कहानियों को
सच मानने-मनवाने की
तुम्हारी मनमानी
इतिहास के साथ
तुम्हारी उच्छृंखल, अश्लील रतिक्रीड़ा
छोड़ भी दो अपना बालहठ
निकल भी आओ
इस मोहक आवर्त के चंगुल से
अपने लिए, सभी के लिए
क्योंकि अकेले नहीं पलटेगी
मिथकों के लुभावने भंवर में फंसी
तुम्हारे बासे, बोझिल सपनों की नाव
हम सबको ले डूबेगा
तुम्हारा यह अतर्क, आसक्त अतीतमोह