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अतीत की चुभन / धूप के गुनगुने अहसास / उमा अर्पिता
Kavita Kosh से
अतीत की यादों के
टूटे काँच को
मैं
दूर/बहुत दूर
फेंक चुकी थी, पर
अब भी जब मैं
नये खूबसूरत
ख्यालों/ख्वाबों को
चुनने लगती हूँ, तो
पुरानी/बिखरी यादों की
कोई किरच
हथेलियों में चुभ जाती है
और रिसते खून से
रंग उठता है मेरा वर्तमान।