भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अतीत में बारिश / पारुल पुखराज
Kavita Kosh से
खूब हुई बारिश
सोई रही वह
सोचते
हो रही है अतीत में बारिश
भीग रहा सहन
सहन में बिछौना
बिछौने पर
सपना
सोई थी वह
खूब बारिश के होने में
सोई ही रह जाती
कोई जो
डूबता बिछौना देख
न लगाता आवाज
दालान से
उसे