अतृप्त नयन / शिव कुमार झा 'टिल्लू'
आकुल पड़ल विगलित नभ दिशि तकैत
छलहुँ रैनि केर निर्वांणक प्रतीक्षा करैत
कोना काटव एहि संतापी जामिनी केॅ
ओ तऽ छलीह हमरे कटैत
झकझोड़ि देलकअंतर्मन केॅ
नयना क पूछल अंतिम प्रश्न-
अहूॅ अहिना करब की?
पददलित कयलक विष रहित फन केॅ
दुहू नैन नोर सँ सरावोरि
देलनि हमर आत्मा केॅ मड़ोरि
निःछल करूणामयी भऽ भाव विभोर
देखऽ लगलहुँ अवलाक धधकैत ज्वार
सुनैत गेलहुँ सुनैत गेलहुँ
निरूत्तर हमर व्यथा क्षीण भऽ गेल-
मंच सँ नेपथ्य भरिगर लागल
की सोचैत छलहुँ?
आ की वास्तविकता
चाननक सेज पर पड़लि अर्धांगिनी
धान्य, रजत, कांचन, भरल
मुदा ! सदिखन खसैत् वेदना केर दामिनी?
छल अपूर्ण यौवन अतृप्त नयन
हा ! तात कोना कएल वरन
एक गाही वयसक सुकन्या केर
कंतक वयस पचपन ।
गामक चुलबुली मोनालिसा
कुहरि रहलि कनक गृह मे-
असहाय तातक देल विपदा केॅ
भोगि रहलि जोगि रहलि
कोना पार करती लछिमन रेखा-
अपन विंहुसल हिलोर केॅ
कतऽ करतीह प्रस्फुटित?
हमरा सँ कयलीह अपन पीड़ा प्रकट
पाषाणी नर कऽ देलनि जीवन विकट
बूढ़ कंतक डोलि गेल आसन
शंकाक अजगर तोड़ि देलक प्रीति स्तंभ
कठोर आदेश देलनि अपन दारा केॅ-
आजुक पश्चात् पर पुरूष सँ गप्प
कथमपि नहि करब
नहि तऽ?
हऽम अचंभित सुन्न शिथिल
कलंकित चरित्र लऽ कऽ
धूरि गेलहुँ निःतरंग अपन पुरान पथ पर
काॅपि रहल दुहु पग
कोन अपराध कयलहुँ
हऽम तऽ छलहुँ पोछैत नोर
अतृप्त नयन सँ झहरैत नोर