भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अतृप्त प्रेमक गीत / राजकमल चौधरी
Kavita Kosh से
ओहि रातुक की मोल सखी, जे सपनेँ नइँ बीतल
रहलहुँ जगले, आँखि रहल सदिखन भीजल-तीतल
मोनक मोनहि धयल, कथाकेँ भेटल नइँ भासा
अधर, अधर लग आयल मुदा पूरल नइँ अभिलासा
सागर लग रहि जाइ पिआसे, एहने हमर पिपासा
आइ जरल छी मन तापमे, रहय वायु सुगन्धेँ शीतल
रहलउँ तोरे संग, वृत्त बाँहिके रचल मुदा, नइँ
संग्रह करिते छी, पाथेय संग किछु बचल मुदा, नइँ
रूपक लागल हाट, हमर आँखिमे जँचल मुदा, नइँ
हमरे हृदयक रूपदग्धता, सभ दिन हमरासँ जीतल
समय-गौतमक शाप, अहिल्या बनले छथि पाथर
अहिल्याकेँ जीवन दी, हम नइँ छी राम गुणागर
तृषालहरि बन्हने अछि डूबइ छी अनजानल सागर
सोमरस कतय भेटइए, दुःख बिख पी छी मृत-मातल
ओहि रातुक की मोल सखी, जे सपनेँ नई बीतल