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अथक / राजुला शाह
Kavita Kosh से
अपने को बिना सुने
ना जाने कब से
बोल रही थी
मैं
जब देखा
तुम चुप हो।
जाने कब से
मैं बोल रही थी
और तुम चुप थे।
उस क्षण
तमाम शब्द
चुक कर
खिड़की के बाहर
कच्ची सड़क पर
बजरी से बिछ गये
बाहर
रोड रोलर के शोर में,
भीतर
तुम्हारा अनकहा
गड़गड़ाने लगा।