अथ राग कालिंगड़ा
(गायन समय प्रभात 3 से 6)
257. विनती। रंग ताल
वाल्हा हूँ ताहरी तूं म्हारो नाथ,
तुम सौं पहली प्रीतड़ी, पूरबलो साथ॥टेक॥
वाल्हा मैं तूं म्हारो ओलेखियो रे, राखिस तूं नैं हृदा मंझारि।
हूँ पामू पीव आपणों रे, त्रिभुवन दाता देव मुरारि॥1॥
वाल्हा मन म्हारो मन माँहीं राखिस, आतम एक निरंजन देव।
चित माँहीं चित सदा निरंतर, येणीं पेरें तुम्हारी सेव॥2॥
वाल्हा भाव भक्ति हरि भजन तुम्हारो, प्रेमै पूरि कमल विगास।
अभि अंतर आनन्द अविनाशी, दादू नी एवैं पूरबी आस॥3॥
258. उपदेश चेतावनी। वर्ण भिन्न ताल
बार हि बार कहूँ रे गहिला, राम नाम कांइ विसार्यो रे।
जन्म अमोलक पामियो, एह्लो रतन कांई हार्यो रे॥टेक॥
विषया वाह्यो नैं तहाँ धायो, कीधो नहिं म्हारो वार्यो रे।
माया धन जोई नैं भूल्यो, सर्वस येणे हार्यो रे॥1॥
गर्भवास देह दमतो प्राणी, आश्रम तेह सँभार्यो रे।
दादू रे जन राम भणीजे, नहिं तो यथा विधि हार्यो रे॥2॥
॥इति राग कालिंगड़ा सम्पूर्ण॥