अथ राग परजिया (परज)
(गायन समय रात्रि 3 से 6)
259. परिचय। खेमटा ताल
नूर रह्या भरपूर, अमी रस पीजिए,
रस माँहीं रस होइ, लाहा लीजिए॥टेक॥
परकट तेज अनंत, पार नहिं पाइए।
झिलमिल झिलमिल होइ, तहाँ मन लाइए॥1॥
सहजैं सदा प्रकाश, ज्योति जल पूरिया।
तहाँ रहैं निज दास, सेवक सूरिया॥2॥
सुख सागर वार न मार, हमारा बास है।
हंस रहैं ता माँहीं, दादू दास है॥3॥
॥इति राग परजिया (परज) सम्पूर्ण॥