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अथ राग माली गौड़ी / दादू ग्रंथावली / दादू दयाल

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अथ राग माली गौड़ी
(गायन समय संध्या 6 से 9 रात्रि)

80. नाम महिमा। झपताल

गोविन्द! नाम तेरा, जीवण मेरा, तारण भव पारा।
आगे इहिं नाम लागे, संतन आधारा॥टेक॥
कर विचार तत्त्व सार, पूरण धन पाया।
अखिल नाम अगम ठाम, भाग हमारे आया॥1॥
भक्ति मूल मुक्ति मूल, भव जल निस्तरणा।
भरम कर्म भंजना भय, कलि विष सब हरणा॥2॥
सकल सिद्धि नव निधि, पूरण सब कामा।
राम रूप तत्त्व अनूप, दादू निज नामा॥3॥

81. करुणा। झपताल

गोविन्द! केसे तरिये,
नाव नाँहीं खेव नाँहीं, राम विमुख मरिये॥टेक॥
ज्ञान नाँहीं ध्यान नाँहीं, लै समाधि नाँही।
विरहा वैराग्य नाँहीं, पंचौं गुण माँहीं॥1॥
प्रेम नाँहीं प्रीति नाँहीं, नाम नाँहीं तेरा।
भाव नाँहीं भक्ति नाँहीं, कायर जीव मेरा॥2॥
घाट नाँहीं बाट नाँहीं, कैसे पग धरिये।
वार नाँहीं पार नाँहीं, दादू बहु डरिये॥3॥

82. विरह। शंख ताल

पिव आव हमारे रे,
मिल प्राण पियारे रे, बलि जाउँ तुम्हारे रे॥टेक॥
सुन सखी सयानी रे, मैं सेव न जाणी रे, हूँ भई दिवानी रे॥1॥
सुन सखी-सहेली रे, क्यों रहूँ अकेली रे, हूँ खरी दुहेली रे॥2॥
हूँ करूँ पुकारा रे, सुन सिरजनहारा रे, दादू दास तुम्हारा रे॥3॥

83. शंख ताल

वाल्हा सेज हमारी रे,
तूं आव हूँ वारी रे, हूँ दासी तुम्हारी रे॥टेक॥
तेरा पंथ निहारूँ रे, सुन्दर सेज सँवारूँ रे, जियरा तुम पर वारूँ रे॥1॥
तेरा अँगड़ा पेखूँ रे, तेरा मुखड़ा देखूँ रे, तब जीवन लेखूँ रे॥2॥
मिल सुखड़ा दीजे रे, यहु लाहड़ा लीजे रे, तुम देखे जीजे रे॥3॥
तेरे प्रेम की माती रे, तेरे रँगड़े राती रे, दादू वारणे जाती रे॥4॥

84. शूल ताल

दरबार तुम्हारे दरदवंद, पीव-पीव पुकारे।
दीदार दरूनै दीजिए, सुन खसम हमारे॥टेक॥
तनहा के तन पीर है, सुन तुंही निवारे।
करम करीमा कीजिए, मिल पीव पियारे॥1॥
शूल सुलाको सो सहूँ, तेग तन मारे।
मिल सांई सुख दीजिए, तूं हीं तूं सँभारे॥2॥
मैं शुहदा तन सोखता, विरहा दुख जारे।
जिय तरसे दीदार को, दादू न विसारे॥3॥

85. शंख ताल

संइयाँ तूं है साहिब मेरा, मैं हूँ बन्दा तेरा॥टेक॥
वन्दा वरदा चेरा तेरा, हुक्मी मैं बेचारा।
मीरां महरवान गुसांई, तूं सिरताज हमारा॥1॥
गुलाम तुम्हारा मुल्ला जादा, लौंडा घर का जाया।
राजिक रिजक जीव तैं दीया, हुक्म तुम्हारे आया॥2॥
शादील बै हाजिर बन्दा, हुक्म तुम्हारे माँहीं।
जब हि बुलाया तब ही आया, मैं मेवासी नाँहीं॥3॥
खसम हमारा सिरजनहारा, साहिब समर्थ सांई।
मीराँ मेरा मेहर मया कर, दादू तुम ही तांई॥4॥

86. करुणा। शंख ताल

मुझ थे कुछ न भया रे,
यहु यों हि गया रे, पछतावा रह्या रे॥टेक॥
मैं शीश न दीया रे, भर प्रेम न पीया रे, मैं क्या कीया रे॥1॥
हौं रंग न राता रे, रस प्रेम न माता रे, नहिं गलित गाता रे॥2॥
मैं पीव न पाया रे, कीया मन का भाया रे, कुछ होइ न आया रे॥3॥
हूँ रहूँ उदासा रे, मुझे तेरी आशा रे, कहै दादू दासा रे॥4॥

87. वैराग्य उपदेश। निसारुक ताल

मेरा मेरा छाड गँवारा, शिर पर तेरे सिरजनहारा।
अपणे जीव विचारत नाँहीं, क्या ले गइला वंश तुम्हारा॥टेक॥
तब मेरा कृत करता नाँहीं, आवत है हंकारा।
कालचक्र सौं खरी परी रे, विसर गया घर बारा॥1॥
जाइ तहाँ का संयम कीजे, विकट पंथ गिरिधारा।
दादू रे तन अपणा नाँहीं, तो कैसे भया संसारा॥2॥

88. निसारुक ताल

दादू दास पुकारे रे, शिर काल तुम्हारे रे, शर साँधे मारे रे॥टेक॥
यम काल निवारी रे, मन मनसा मारी रे, यहु जन्म न हारी रे॥1॥
सुख नींद न सोइ रे, अपणा दुख रोइ रे, मन मूल न खोई रे॥2॥
शिर भार न लीजे रे, जिसका तिसको दीजे रे, अब ढील न कीजे रे॥3॥
यहु अवसर तेरा रे, पंथी जाग सवेरा रे, सब बाट बसेरा रे॥4॥
सब तरुवर छाया रे, धन यौवन माया रे, यहु काची काया रे॥5॥
इस भरम न भूली रे, बाजी देख न फूली रे, सुख सागर झूली रे॥6॥
रस अमृत पीजे रे, विष का नाम न लीजे रे, कह्या सो कीजे रे॥7॥
सब आतम जाणी रे, अपणा पीव पिछाणी रे, यहु दादू वाणी रे॥8॥

89. भक्ति उपदेश। त्रिकाल

पूजूँ पहली गणपति राय, पड़हूँ पावों चरणों धाय।
आगैं ह्वै कर तीर लगावे, सहजैं अपणे वैन सुनावे॥टेक॥
कहूँ कथा कुछ कही न जाई, इक तिल में ले सबै समाइ॥1॥
गुण हु गहीर धीर तन देही, ऐसा समर्थ सबै सुहाइ॥2॥
जिस दिशि देखूँ ओही है रे, आप रह्या गिरि तरुवर छाइ॥3॥
दादू रे आगे क्या होवे, प्रीति पिया कर जोड़ लगाइ॥4॥

90. परिचय। पंचम ताल

नीको धन हरि कर मैं जान्यौं, मेरे अखई ओही।
आगे-पीछे सोई है रे, और न दूजा कोई॥टेक॥
कबहूँ न छाडूँ संग पिया को, हरि के दर्शन मोही।
भाग हमारे जो हौं पाऊँ, शरणे आयो तोही॥1॥
आनँद भयो सखी जिय मेरे, चरण कमल को जोई।
दादू हरि को बावरो, बहुरि वियोग न होई॥2॥

91. हितोपदेश। पंचम ताल

बाबा मर्दे मर्दां गोइ, ये दिल पाक करदम धोइ॥टेक॥
तर्क दुनियाँ दूर कर दिल, फर्ज फारिग होइ।
पैवस्त परवरदिगार सौं आकिलां सिर सोइ॥1॥
मनी मुरदः हिर्स फानी, नफ्स रा पामाल।
बदी रा बरतरफ करदः; नाम नेकी ख्याल॥2॥
जिंदगानी मुरदः बाशद, कुंजे कादिर कार।
तालिबां रा हक हासिल, पासबाने यार॥3॥
मर्दे मर्दां सालिकां सर, आशिकां सुलतान।
हजूरी होशियार दादू, इहै गो मैदान॥4॥

92. ईवर चरित। त्रिताल

ये सब चरित तुम्हारे मोहना, मोहे सब ब्रह्मंड खंडा।
मोहे पवन पापी परमेश्वर, सब मुनि मोहे रवि चंदा॥टेक॥
साइर सप्त मोहे धरणी धरा, अष्ट कुली पर्वत मेरु मोहे।
तीन लोक मोहे जग जीवन, सकल भुवन तेरी सेव सोहे॥1॥
शिव विरंचि नारद मुनि मोहे, मोहे सुर सब सकल देवा॥
मोहे इन्द्र फणींद्र पुनि मोहे, मुनि मोहे तेरे करत सेवा॥2॥
अगम अगोचर अपार अपरं परा, को यहु तेरे चरित न जाणे।
ये शोभा तुमको सोहे सुन्दर, बलि-बलि जाऊँ दादू न जाणे॥3॥

93. गुरु ज्ञान। त्रिताल

ऐसा रे गुरु ज्ञान लखाया, आवे जाइ सो दृष्टि न आया॥टेक॥
मन थिर करूँगा नाद भरूँगा, राम रमूँगा, रस माता॥1॥
अधर रहूँगा, करम दहूँगा, एक भजूँगा, भगवन्ता॥2॥
अलख लखूँगा, अकथ कथूँगा, एक मथूँगा, गोविन्दा॥3॥
अगह गहूँगा, अकह कहूँगा अलह लहूँगा, खोजन्ता॥4॥
अचर चरूँगा, अजर जरूँगा, अतिर तिरूँगा, आनन्दा॥5॥
यहु तन तारूँ, विषय निवारूँ, आप उतारूँ, साधन्ता॥6॥
आऊँ न जाऊँ, उनमनि लाऊँ, सहज समाऊँ, गुणवन्ता॥7॥
नूर पिछाणूँ, तेजहि जाणूँ, दादे ज्योतिहि, देखन्ता॥8॥

94. तत्त्व उपदेश। पंचम ताल

बंदे हाजिरां हजूर वे, अल्लह आली नूर वे।
आशिकां रा सिदक साबित, तालिबा भरपूर वे॥टेक॥
वजूद मैं मौजूद है, पाक परवरदिगार वे।
देख ले दीदार को, गेब गोता मार वे॥1॥
मौजूद मालिक तख्त खालिक, आशिकां रा ऐन वे।
गुदर कर दिल मग्ज भीतर, अजब है यहु सैंन वे॥2॥
अर्श ऊपर आप बैठा, दोस्त दाना यार वे।
खोज कर दिल कब्ज करले, दरूने दीदार वे॥3॥
हुशियार हाजिर चुस्त करदा, मीराँ महरवान वे।
देख ले दर हाल दादू, आप है दीवान वे॥4॥

95. वस्तु निर्देश। चौताल

निर्मल तत निर्मल तत, निर्मल तत ऐसा।
निर्गुण निज निधि निरंजन, जैसा है तैसा॥टेक॥
उत्पत्ति आकार नाँहीं, जीव नाँहीं काया।
काल नाँहीं कर्म नाँहीं, रहिता राम राया॥1॥
शीत नाँहीं घाम नाँहीं, धूप नाँहीं छाया।
वायु नाँहीं वर्ण नाँहीं, मोह नाँहीं माया॥2॥
धरणि आकाश अगम, चन्द सूर नाँहीं।
रजनी निशि दिवस नाँहीं, पवना नहिं जाँहीं॥3॥
कृत्रिम घट कला नाँहीं, सकल रहित सोई
दादू निज अगम-निगम, दूजा नहिं कोई॥4॥

॥इति राग माली गौड़ सम्पूर्ण॥