अथ विश्वास का अंग
दादू नमो नमो निरंजनं, नमस्कार गुरु देवतः।
वन्दनं सर्व साधवा, प्रणामं पारंगतः॥1॥
दादू सहजैं-सहजैं होइगा, जे कुछ रचिया राम।
काहे को कलपे मरे, दुखी होत बे काम॥2॥
सांई किया सो ह्वै रह्या, जे कुछ करे सो होइ।
कर्ता करे सो होत है, काहे कलपे कोइ॥3॥
दादू कहै-जे तैं किया सो ह्वै रह्या, जे तूं करे सो होइ।
करण-करावण एक तूं, दूजा नाँहीं कोइ॥4॥
सोइ हमारा सांइयां, जे सबका पूरणहार।
दादू जीवन-मरण का, जाके हाथ विचार॥5॥
दादू स्वर्ग भुवन पाताल मधि, आदि-अन्त सब सृष्ट।
सिरज सबन को देत है, सोइ हमारा इष्ट॥6॥
करणहार कर्ता पुरुष, हमको कैसी चिन्त।
सब काहू की करत है, सो दादू का मिन्त॥7॥
दादू मनसा वाचा कर्मणा, साहिब का विश्वास।
सेवग सिरजनहार का, करे कौन की आस॥8॥
श्रम ना आवे जीव को, अणकीया सब होय।
दादू मारग महर का, विरला बूझे कोय॥9॥
दादू उद्यम अवगुण को नहीं, जे कर जाणे कोइ।
उद्यम में आनन्द है, जे सांई सेती होइ॥10॥
दादू पूरणहारा पूरसी, जो चित रहसी ठाम।
अंतर तैं हरि उमंग सी, सकल निरंतर राम॥11॥
पूरक पूरा पास है, नाहीं दूर गँवारा।
सब जानत है बावरे, देबे को हुसियार॥12॥
दादू चिन्ता राम को, समर्थ सब जाणे।
दादू राम सँभाल ले, चिन्ता जनि आणे॥13॥
दादू चिन्ता कीयां कुछ नहीं, चिन्ता जीव को खाय।
होणा था सो ह्वै रह्या, जाणा है सो जाय॥14॥
दादू जिन पहुँचाया प्राण को, उदर ऊर्ध्व मुख क्षीर।
जठर अग्नि में राखिया, कोमल काया शरीर॥15॥
सो समर्थ संगी संग रहै, विकट घाट घट भीर।
सो सांई सैं गहगही, जनि भूले मन बीर॥16॥
गोविन्द के गुण चित्त कर, नैन बैन पग शीश।
जिन मुख दीया कान कर, प्राणनाथ जगदीश॥17॥
तन मन सौंज सँवार सब, राखैं बिसवा बीस।
सो साहिब सुमिरे नहीं, दादू भान हदीस॥18॥
दादू सो साहिब जनि बीसरे, जिन घट दीया जीव।
गर्भ वास में राखिया, पाले-पोषे पीव॥19॥
दादू राजिक रिजक लिये खड़ा, देवे हाथों हाथ।
पूरक पूरा पास है, सदा हमारे साथ॥20॥
हिरदै राम सँभाल ले, मन राखे विश्वास।
दादू समर्थ सांइयां, सबकी पूरे आस॥21॥
दादू सांई सबन को, सेवग ह्वै सुख देय।
अयां मूढ़ मति जीव की, तो भी नाम न लेय॥22॥
दादू सिरजनहारा सबन का, ऐसा है समरत्थ।
सोई सेवक ह्वै रह्या, जहँ सकल पसारे हत्थ॥23॥
धन्य-धन्य साहिब तू बड़ा, कौण अनुपम रीत।
सकल लोक शिर सांइयां, ह्वै कर रह्या अतीत॥24॥
दादू हूँ बलिहारी सुरति की, सब की करै सँभाल।
कीड़ी कुंजर पलक में, करता है प्रतिपाल॥25॥
छाजन भोजन
दादू छाजन भोजन सहज में, संइयां देइ सो लेय।
तातैं अधिका और कुछ, सो तूं कांइ करेय॥26॥
दादू टूका सहज का, संतोषी जन खाय।
मृतक भोजन गुरुमुखी, काहे कलपे जाय॥27॥
दादू भाड़ा देह का, तेता सहज विचार।
जेता हरि बिच अंतरा, तेता सबै निवार॥28॥
दादू जल दल राम का, हम लेवैं परसाद।
संसार का समझै नहीं, अविगत भाव अगाध॥29॥
परमेश्वर के भाव का, एक कणूंका खाय।
दादू जेता पाप था, भरम करम सब जाय॥30॥
दादू कौण पकावे कौण पीसे।
तहाँ तहाँ सीधा ही दीसे॥31॥
दादू जे कुछ खुशी खुदाइ की, होवेगा सोइ।
पच-पच कोइ जनि मरे, सुन लीज्यो लोइ॥32॥
दादू छूट खुदाइ कहीं को नाहीं, फिर हो पृथ्वी सारी।
दूजी दहणि दूर कर बोरे, साधु शब्द विचारी॥33॥
दादू बिना राम कहीं को नाँही, फिरहो देश विदेशा।
दूजी दहणि दूर कर बोरे, सुन यहु साधु संदेशा॥34॥
दादू सिदक सबूरी साँच गहि, सबित राख यकीन।
साहिब सौं दिल लाइ रहो, मुरदा ह्वै मिस्कीन॥35॥
दादू अण बाँछित टूका खात है, मर्महि लागा सन्न।
नाम निरंजन लेत है, यों निर्मल साधु जन्न॥36॥
अणबाँछा आगे पड़े, खिरा विचार रु खाइ।
दादू फिर न तोड़ता, तरुवर ताक न जाइ॥37॥
अणबाँछा आगे पड़े, पीछे लेइ उठाय।
दादू के शिर दोष यहु, जे कुछ राम रजाय॥38॥
अणबाँछी अजगैब की, रोजी गगन गिरास।
दादू सत कर लीजिए, सो सांई के पास॥39॥
कर्ता कसौटी
मीठे का सब मीठा लागे, भावै विष भर देइ।
दादू कड़वा ना कहै, अमृत कर कर लेइ॥40॥
विपत्ति भली हरि नाम सौं, काया कसौटी दुःख।
राम बिन किस काम का, दादू संपत्ति सुःख॥41॥
विश्वास-संतोष
दादू एक विश्वास बिन, जियरा डाँवाँडोल।
निकट निधी दुख पाइये, चिन्तामणि अमोल॥42॥
दादू बिन विश्वासी जीयरा, चंचल नाँहीं ठौर।
निश्चय निश्चल ना रहै, कछू और की और॥43॥
दादू होणा था सो ह्वै रह्या, स्वर्ग न बाँछी धाय।
नरक कने थी ना डरी, हुआ सो होसी आय॥44॥
दादू होणा था सो ह्वै रह्या, जनि बाँछे सुख-दुःख।
सुख माँगे दुःख आइसी, पै पिव न विसारी मुख॥45॥
दादू होणा था सो ह्वै रह्या, जे कुछ किया पीव।
पल बधे न छिन घटे, ऐसा जाणी जीव॥46॥
दादू होणा था सो ह्वै रह्या, और न होवे आय।
लेणा था सो ले रह्या, और न लीया जाय॥47॥
ज्यों रचिया त्यों होइगा, काहे को शिर लेह।
साहिब ऊपरि राखिए, देख तमासा येह॥48॥
पतिव्रत निष्काम
ज्यों जाणौं त्यों राखियो, तुम शिर डाली राय।
दूजा को देखूँ नहीं, दादू अनत न जाय॥49॥
ज्यों तुम भावे त्यों खुशी, हम राजी उस बात।
दादू के दिल सिदक सौं, भावै दिन को रात॥50॥
दादू करणहार जे कुछ किया, सो बुरा न कहणा जाय।
सोई सेवग संत जन, रहिबा राम रमाय॥51॥
विश्वास-संतोष
दादू कर्ता हम नहीं, कर्ता औरे कोइ।
कर्ता है सो करेगा, तूं जनि कर्ता होइ॥52॥
हरि भरोसे
काशी तज मगहर गया, कबीर भरोसे राम।
सदेही सांई मिल्या, दादू पूरे काम॥53॥
विश्वास-संतोष
दादू रोजी राम हे, राजिक रिजक हमार।
दादू उस परसाद सौं, पोष्या सब परिवार॥54॥
पंच सन्तोषे एक सौं, मन मति वाला माँहिं।
दादू भागी भूख सब, दूजा भावे नाँहिं॥55॥
दादू साहिब मेरे कपड़े, साहिब मेरा खाण।
साहिब शिर का ताज है, साहिब पिंड पराण॥56॥
विनती
सांई सत सन्तोष दे, भाव भक्ति विश्वास।
सिदक सबूरी साँच दे, माँगे दादू दास॥57॥
॥इति विश्वास का अंग सम्पूर्ण॥