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अथ श्री उत्तराखंड दर्शनम / नेत्र सिंह असवाल

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जयति जय-जय देवभूमि, जयति उत्तराखंड जी
कांणा गरूड़ चिफळचट्ट, मनखि उत्तणादंड जी।

तेरि रिकदूंल्यूं की जै-जै, तेरि मुसदूल्यूं की जै
त्यारा गुंणी बांदरू की, बाबा बजि खंड जी।

इक मिनिस्टर धुरपिळम् पट, एक उबरा अड़गट्यूं
हैंकू खांदम नप्प ब्वादा, धारी म्यारू डंड जी।

माट मंग ज्वन्नि व मेंहनत, मोल क्वी नी खेति कू
यू बुढ़ापा पिनसन छ, रोग जमा फंड जी।

मुंड निखोळू करिगीं बगतळ, ऊ भगत त्यरा तरि गईं
जौंकि दुयया जगा टंगड़ी, ऊंकि अकळाकंड जी।

दुख दलेदर कष्ट मिटलो, नौनु बूंण जालु जी
गाणि-स्याणि-ताणि निशिदिन, रीटिगे बरमंड जी।

परदेस अपणू देस अभि भी, अभि भि ‘देसी’ ‘पहाड़ि’ जी
बत्तीस सीढ़ी ‘कुरदरा’ की, अभि भि घळचाघंड जी।