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अथ सुन्दरी का अंग / दादू ग्रंथावली / दादू दयाल

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अथ सुन्दरी का अंग

दादू नमो नमो निरंजनं, नमस्कार गुरु देवतः।
वन्दनं सर्व साधवा, प्रणामं पारंगतः॥1॥

सुन्दरी विलाप

आरतिवन्ती सुन्दरी, पल-पल चाहे पीव।
दादू कारण कंत के, तालाबेली जीव॥2॥
काहे न आवहु कंत घर, क्यों तुम रहे रिसाय।
दादू सुन्दरि सेज पर, जन्म अमोलक जाय॥3॥
आतम अंतर आव तूं, या है तेरी ठौर।
दादू सुन्दरि पीव तूं, दूजा नाँहीं और॥4॥
दादू पीव न देख्या नैन भर, कंठ न लागी धाइ।
सूती नहिं गल बाँह दे, बिच ही गई बिलाइ॥5॥
सुरति पुकारे सुन्दरी, अगम अगोचर जाय।
दादू विरहनि आतमा, उठ-उठ आतुर धाय॥6॥
सांई कारण सेज सँवारी, सब तैं सुन्दर ठौर।
दादू नारी नाह बिन, आण बिठाये और॥7॥
कोई अवगुण मन बस्या, चित तैं धरी उतार।
दादू पति बिन सुन्दरी, हांडै घर-घर बार॥8॥

अन्य लग्न व्यभिचार

प्रेम प्रीति सनेह बिन, सब झूठे शृंगार।
दादू आतम रत नहीं, क्यों माने भरतार॥9॥

सुन्दरी विलाप

दादू हूँ सुख सूती नींद भर, जागे मेरा पीव।
क्यों कर मेला होइगा, जागे नाँहीं जीव॥10॥
सखी न खेले सुन्दरी, अपणे पीव सौं जाग।
स्वाद न पाया प्रेम का, रही नहीं उर लाग॥11॥
पंच दिहाड़े पीव सौं, मिल काहे न खेलै।
दादू गहली सुन्दरी, क्यों रहै अकेलै॥12॥
सखी सुहागिनी सब कहैं, हूंर दुहागिनी आहि।
पिव का महल न पाइये, कहाँ पुकारूँ जाइ॥13॥
सखी सुहागिनी सब कहैं, कंत न बूझे बात।
मनसा वाचा कर्मणा, मूर्च्छि-मूर्च्छि जिव जात॥14॥
सखी सुहागिनि सब कहैं, पिवसौं परस न होय।
निश बासर दुख पाइये, यहु व्यथा न जाणे कोय॥15॥
सखी सुहागिनी सब कहैं, प्रगट न खेले पीव।
सेज सुहाग न पाइये, दुखिया मेरा जीव॥16॥

अन्य लग्न व्यभिचार

पुरुष पुरातन छाड़कर, चली आन के साथ।
सो भी सँग तैं बीछुट्या, खड़ी मरोड़े हाथ॥17॥

सुन्दरी-विलाप

सुन्दरि कबहूँ कंत का, मुख सौं नाम न लेय।
अपणे पिव के कारणैं, दादू तन-मन देय॥18॥
नैन बैन कर वारणै, तन-मन पिंड पराण।
दादू सुन्दरि बलि गई, तुम पर कंत सुजाण॥19॥
तन भी मेरा मन भी तेरा, तेरा पिंड पराण।
सब कुछ तेरा तूं है मेरा, यहु दादू का ज्ञान॥20॥
सुन्दरि मोहै पीव को, बहुत भाँति भरतार।
त्यों दादू रिझवे राम को, अनन्त कला करतार॥21॥
नदियाँ नीर उलंघ कर, दरिया पैली पार।
दादू सुन्दरि सो भली, जाय मिले भरतार॥22॥

सुन्दरी सुहाग

प्रेम लहर गह ले गई, अपणे प्रीतम पास।
आत्म सुन्दरि पीव को, बिलसे दादू दास॥23॥
सुन्दरि को सांई मिल्या, पाया सेज सुहाग।
पिव सौं खेले प्रेम रस, दादू मोटे भाग॥24॥
दादू सुन्दरि देह में, सांई को सेवे।
राती अपणे पीव सौं, प्रेम रस लेवे॥25॥
दादू निर्मल सुन्दरी, निर्मल मेरा नाह।
दोन्यों निर्मल मिल रहे, निर्मल प्रेम प्रवाह॥26॥
सांई सुन्दरि सेज पर, सदा एक रस होय।
दादू खेले पीव सौं, ता सम और न कोय॥27॥

॥इति सुन्दरी का अंग सम्पूर्ण॥