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अदब से सिर झुकाए जो खड़े थे / वीरेन्द्र वत्स

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अदब से सिर झुकाए जो खड़े थे
उन्हें भी वार करना आ गया है
 
समेटो ज़ालिमो दूकान अपनी
उन्हें व्यापार करना आ गया है
 
दिलों में फड़फड़ाती आरज़ू का
उन्हें इज़हार करना आ गया है
 
तुम्हारी बात पर जो मर-मिटे थे
उन्हें इनकार करना आ गया है
 
अपने वक़्त पर अपनी ज़मीं पर
उन्हें अधिकार करना आ गया है