भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अदम सुकून में जब कायनात होती है / अदम गोंडवी
Kavita Kosh से
'अदम' सुकून में जब कायनात होती है ।
कभी-कभार मेरी उससे बात होती है ।
कहीं हो ज़िक्र अक़ीदत<ref>श्रद्धा-आस्था</ref> से सर झुका देना,
बड़ी अज़ीम<ref>महान्</ref> ये औरत की ज़ात होती है ।
उफ़ुक<ref>क्षितिज</ref> पे खींच दे पर्दा, चराग़ जल जाए,
हम अगर सोच लें तो दिन में रात होती है ।
नवीन जंग छिड़ी है इधर विचारों में,
रोज़ इस मोर्चे पर शह व मात होती है ।
समझ के तन्हा न इस शख़्स को दावत देना,
'अदम' के साथ ग़मों की बरात होती है।
शब्दार्थ
<references/>