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अदल-बदल / शैलजा सक्सेना
Kavita Kosh से
अगर हम
फिर से शुरू करें
ज़िंदगी,
तो क्या-क्या बदलोगे तुम?
और क्या-क्या बदलूँगी मैं?
मैं अपनी
हर बात में
सावन सी बरसती आँखों
के कुछ बादल,
तुम्हारे सीने के धुँआते
रेगिस्तान में रख दूँगी
कि
तुम्हारी आग तुमको ही न जलाये,
और तुम,
अपनी
चट्टानी सोच में से कुछ मुझे दे देना
कि
सावन के बादल
मुझे न डुबोयें!
तुम,
मुझे अपने सपनों की पिटारी देना
और मैं,
तुम्हें
अपने गीतों की
सड़क दूँगी,
जिस पर
हम वो पोटरी उठाये
चलेंगे
साथ-साथ!
तुम,
अपनी सोच के
कपड़े बदल लेना
और
मैं प्यार का श्रृंगार कर लूँगी
फिर
हम चलेंगे,
जीवन की उस महफिल में
जिसमें
हँसी की लहरों पर तैरेंगे,
विश्वास के पत्थर
जिन पर
हमारा नाम लिखा होगा!
आओ! हम
फिर से शुरू करें
यह ज़िंदगी..
इस मोड़ से
अगले मोड़ तक!