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अदाएँ दिखाकर चले जा रहे हैं / डी. एम. मिश्र
Kavita Kosh से
अदाएँ दिखाकर चले जा रहे हैं
सताकर हमें आप क्या पा रहे हैं
ख़ुदा ने उन्हें बख़्श दी इतनी दौलत
दिखाकर ग़रीबों को ललचा रहे हैं
बहुत काम करने थे दुनिया में लेकिन
किसी नाज़नीं पर मरे जा रहे हैं
वहीं चाँदनी इतनी ख़ामोश दिखती
सितारे वहीं इतना इतरा रहे हैं
बड़ी देर से आपको सुन रहा हूँ
समझते न ख़ुद हमको समझा रहे हैं
इसे बचपना तो नहीं मान सकते
मेरी जाँ निकलती वो मुस्का रहे हैं
नज़़र से बड़ी भी जुबाँ कोई होती
क़िताबों में क्यों हमको उलझा रहे हैं