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अधबना स्वर्ग / टोमास ट्रान्सटोमर
Kavita Kosh से
हताशा और वेदना स्थगित कर देती हैं
अपने-अपने काम
गिद्ध स्थगित कर देते हैं
अपनी उड़ान
अधीर और उत्सुक रोशनी बह आती है बाहर
यहाँ तक कि प्रेत भी अपना काम छोड़
लेते हैं एक-एक जाम
हमारी बनाई तस्वीरें -
हिमयुगीन कार्यशालाओं के हमारे वे लाल बनैले पशु
देखते हैं
दिन के उजास को
यों हर चीज अपने आसपास देखना शुरू कर देती है
धूप में हम चलते हैं सैकड़ों बार
यहाँ हर आदमी एक अधखुला दरवाजा है
उसे
हरेक आदमी के लिए बने
हरेक कमरे तक ले जाता हुआ
हमारे नीचे है एक अंतहीन मैदान
और पानी चमकता हुआ
पेड़ों के बीच से -
वह झील मानो एक खिड़की है
पृथ्वी के भीतर
देखने के वास्ते।
(अनुवाद : शिरीष कुमार मौर्य)