भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अधम उद्धारनी मैं जानी, श्री जमुना जी / गोविन्ददास

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अधम उद्धारनी मैं जानी, श्री जमुना जी।
गोधन संग स्यामघन सुन्दर तीर त्रिभंगी दानी॥१॥

गंगा चरन परस तें पावन हर सिर चिकुर समानी।
सात समुद्र भेद जम-भगिनी हरि नखसिख लपटानी॥२॥

रास रसिकमनि नृत्य परायन प्रेम पुंज ठकुरानी।
आलिंगन चुंबन रस बिलसत कृष्ण पुलिन रजधानी॥३॥

ग्रीष्म ऋतु सुख देति नाथ कों संग राधिका रानी।
गोविन्द प्रभु रवि तनया प्यारी भक्ति मुक्ति की खानी॥४॥