अधरन पर मुरली मधुर धरिकै, टेरत मृदुतान मुरारी गोवर्धन धारी ।।
रवि तनया तट तरू कदम्ब तर, ठाढे त्रिभंगी लाल मुरली धर राकापति उजियारी ।।
मधुर तान तन राग जगावत । तजि गृह ब्रज वनितन्हि चलीं धावत ।।
निरखैं मतवारी वदन हरि कै, हम जनम तुम्हहिं सन हारी गोवर्धन धारी ।।1।।
कोउ गहि चरन बाँह गले मेली, हिलिमिलि सखिन्ह करत अटखेली
तन सुधि सकल बिसारी ।।
तन मेलति कोउ छैल छबीली । चुम्बति चरन चहकि चटकीली ।।
गावति मोहन संग सुर भरि कै, नाचत दोउ बाँह पसारी गोवर्धनधारी ।।2।।
अर्धरात्रि गोपिन्ह संग मोहन, मोहक रूप धरे कुंजन वन रास रच्यो बनवारी ।।
धनि-धनि गोपि ग्वाल व्रजवासी । जिन संग खेल करत सुखरासी ।।
मनुहारत राधा चरन परि कै , समुचीं वृषभानु दुलारी गोवर्धनधारी ।।3।।
बडभागी गोकुल बरसाना, रास देखि मोहे सुर नाना जै जै कुंज बिहारी ।।
मुनि मन हरष नमत यदुराई । आरति हरहु प्रणत सुखदाई ।।
निज भक्ति देहु करूणाकरि कै, मेटहु भव दुर्गति भारी गोवर्धनधारी ।।4।।