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अधर पर ठहरी हुई एक प्यास है / रंजना वर्मा

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अधर पर ठहरी हुई एक प्यास है
मुझे अब बस साँवरे से आस है

जगत भर के मोह माया जाल से
बचायेगा वो यही विश्वास है

गया शैशव और यौवन खेल में
बुढ़ापा दुर्बल न आता रास है

तभी तक इस जिंदगी का आसरा
ग्रहण करती देह जब तक श्वांस है

चक्र जीवन मृत्यु का चलता रहे
वही जीवन जो स्वयं के पास है

नहीं होता दुख परिस्थिति में किसी
खिला रहता नित अधर पर हास है

उसे भय होता नहीं है मृत्यु का
ह्रदय जिसके साँवरे का वास है