अधिक बाते क्या कहूँ / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
1-मौका
गरज करके पब्लिक में
बोले शिखण्डी लाल
तीस बरस तक काँग्रेसी
रहे उड़ाते माल ।
अधिक बाते क्या कहूँ
तुम खुद हो हुशियार
मौका देकर तो देखो
हमको भी इस बार ।
2-जनता की सुरक्षा
था रिश्वत का केस
दारोगा जी हुए गिरफ़्तार
कारण पूछा अधिकारी ने,
तो यों बोले-
जनता की सुरक्षा की
मुझ पर है ज़िम्मेदारी
रिश्वत नहीं लेता
सिर्फ़ करता हूँ
उनके धन की रखवारी;
धन मेरे पास रहेगा,
तो कोई भी चोर -लुटेरा
जनता को कुछ नहीं कहेगा।
3-सम्बन्ध
किस सम्बन्ध में बँधूँ
किस बन्धन में कसूँ
इस मन का और तन का
क्या भरोसा !
जन्म -मृत्यु दोनों बन्धन
इन दोनों सिरों से है –
जीवन का शाश्वत सम्बन्ध
-0-02-06-1979)
4-प्रतिरूप
तुम गढ़ दो प्रतिरूप मेरा
मैं उसमें प्राण भर दूँ
उड़ता हुआ व्याकुल विहग बन
नाप लूँ आकाश सरा
स्वय की न हो पहचान मुझे
मन हो , तुम पहचान कर लो
या छुपा दो
विस्मृति के गहन गर्त में।
-0-02-06-1979)
5-वह दिन दूर नहीं
अपने साहब के चहेते,
चपरासी पलटूदास
चार बरस से रहे खोदते,
सिर्फ़ लॉन की घास।
हमसे बोले-
बिना टिकट रोज़ हज़ारों,
सफ़र रेल में करते
बिना टिकट चुनाव लड़ने से
आप क्यों इतना डरते?
जब होगी जनता साथ
फिर कोई कुसूर नहीं।
हम बोले पलटूदास जी
अब वह दिन दूर नहीं ।
-0-14-11-80) युवा रिपोर्टर( होली अंक10—3-82)
6-प्रयास
खण्डित तरी-से आवर्त्त में
घूमते रहे प्रयास,
दुधमुँहे अनुभव की गन्ध लिये
अस्तित्वहीन कुछ पल बचे
चक्रव्यूह के आसपास ।
-0--15-05-1981
7-सभ्य
भजन, आरती, पूजा
ये सब दकियानूसी ख़्याल
धर्म-ग्रन्थों के पन्ने फाड़कर
बाँध रहे पुड़िया वैद्य जी
अब अहम संकीर्णता को लाँघ चुके हैं
हम सभ्य हो गए
घिसे -पिटे संस्कार
अब लभ्य हो गए।
-0-15-05-1981
8-प्यास
बैठकर तट पर, प्रवाह से भयातुर
नहीं मिटती प्यास।
तोड़कर कगार, लाँघकर मझधार
होता जल-स्पर्श का आभास
बन्धु ! छोड़ दे डूबने का डर
डूब जा आकन्ठ
और गहराई में उतर
भीग जाएँ रोम, कर दे सब कुछ होम
पी ले धरती, रौंद दे आकाश।
-0-15-05-1981 ( रूप लेखा कलकत्ता 27-12-81)
9-मोह
मकड़ी तेरा निर्माण
तेरा जीवन -मोह
मेहनत से बुना जाता
उसी में अनुस्यूत सब जंजाल,
फिर मुक्ति की चिन्ता व्यर्थ
मोह का फिर क्या अर्थ ?
-0-(15-05-1981)
10
कलियुग में बोले द्रोणाचार्य एकलव्य से-
“प्रसन्न हूँ तुम्हारी भक्ति से
जो चाहते हो माँग लो।”
एकलव्य बोला –“ गुरुदेव !
यदि प्रसन्न हैं मुझसे,
तो एक काम कीजिए
द्वापर में आपने
कटवाया था अँगूठा
यह कलियुग है,
अपना दायाँ हाथ
काटकर दे दीजिए।”
-0-(12-12-81)
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